भूमि वर्णानुसार चार प्रकार की होती है- 1. ब्राह्मणी भूमि 2.क्षत्रिया भूमि 3. वैश्या भूमि 4. शूद्र भूमि
■ ब्राह्मणी भूमि
सफेद रंग की मिट्टी वाली, स्वाद में मधुरता का अनुभव कराने वाली व सुन्दर गन्ध वाली ब्राह्मणी भूमि होती है। यह भमि स्पर्श करने में सुखदायक होती है। यह भूमि गहस्थों के लिए शुभ होती है। इस पर भवन बनाकर रहने से परिवार में चित्त शुद्ध धन-धान्य एवं समस्त सुख रहते हैँ। सरस्वती व लक्ष्मी दोनों की कृपा बनी रहती है। इस प्रकार की भूमि पर साहित्विक संस्था, विश्वविद्यालय, स्कूल विद्यालय, मन्दिर, धर्मशाला व मांगलिक कार्य हेत् भवन निर्माण करना चाहिए।
■ क्षत्रिया भूमि
लाल रंग की मिट्टी वाली, स्वाद में कषैली व रक्तान्ध से युक्त भूमि क्षत्रिया होती है। यह भूमि स्पर्श करने में कठोर होती है। यह भूमि राज्यप्रदा होती है। इस प्रकार की भूमि पर राजकीय कार्यालय, सैनिक या बहादुरों के लिए भवन बनाना उपयुक्त है। इस भूमि से पराक्रम की ऊर्जा स्वतः व सरल रूप से मिलती है। इस पर सभागार, छावनी, शस्त्रागार, कारखाना, सैनिक कालोनी आदि बनाना चाहिए।
■ वैश्या भूमि
हरे या पीले रंग की मिट्टी वाली, स्वाद में खट्टी व शहद सदृश गन्ध से युक्त भूमि वैश्या होती है। यह भूमि व्यवसायियों के लिए श्रेष्ठ है। इसमें दुकान, व्यावसायिक प्रतिष्ठान, धनिकों को भवन, बंगला या कोठी निर्मित करनी चाहिए। वैश्या भूमि धनप्रदा होती है।
■ शूद्रा भूमि
काले रंग की मिट्री वाली, स्वाद में कड़वी व मदिरा सदृश गन्ध से युक्त भूमि शूद्रा भूमि होती है। यह भूमि त्याज्य होती है। यह भूमि स्पर्श करनें पर अति कठोर होती है। यह भूमि मात्र उद्योग-धन्धों हेतु उपयुक कही गयी है।ऐसी भूमि श्रमिको कालोनी, कुष्ठ आश्रम या श्मशान आदि के लिए त्याज्य देनी चाहिए। जनता केलिए कालोनी बसाने के योग्य नही होती है।